वारदात की दिल्ली
राजधानी दिल्ली में हत्या की वारदात का बढ़ना यह साबित करता है कि यहां कानून-व्यवस्था की हालत ठीक नहीं है। अपराधियों को पुलिस का कोई भय नहीं है। रविवार को मध्य दिल्ली के ओल्ड राजेंद्र नगर इलाके में संपत्ति विवाद में दंपती और उनके बेटे की घर में घुसकर हत्या कर दी गई। पिछले कुछ दिनों में ऐसी कई वारदात हो चुकी हैं। इससे पता चलता है कि यहां दिमाग में धन-दौलत और संपत्ति इतनी हावी हो गई है कि पूरा का पूरा परिवार ही खत्म करने में भी लोगों को हिचक नहीं हो रही है। यह कोई इकलौती वारदात नहीं है। अगर पुलिस के आंकड़ों को देखा जाए तो प्रॉपर्टी के लिए होने वाली हत्याओं का ग्राफ बढ़ रहा है।
प्रॉपर्टी ही नहीं यहां छोटी-छोटी बातों पर भी हत्याएं हो रही हैं। पिछले साल तो सिगरेट और पराठा नहीं देने पर भी हत्या की वारदातें अंजाम दी गई थीं। उधार के पैसे मांगने, किराया नहीं देने पर हमले और रोडरेज की घटनाएं तो रोजाना होती रहती हैं। यह स्थिति देश की राजधानी की है तो बाकी शहरों में क्या हो रहा होगा यह आसानी से समझा जा सकता है। समझने कि बात यह भी है कि दिल्ली पुलिस ऐसी वारदातों पर अंकुश लगाने में क्यों नाकाम रहती है। इसका सीधा-सीधा जवाब यह है कि दिल्ली पुलिस में कर्मचारियों की संख्या शहर की आबादी के हिसाब से काफी कम है। पिछले दिनों दिल्ली हाई कोर्ट ने भी इस मामले पर टिप्पणी की थी और कहा था कि पुलिस को जल्द से जल्द कर्मचारियों की भर्ती करनी चाहिए। इसके अलावा गौर करने वाली एक बात यह भी है कि क्या सिर्फ पुलिसकर्मियों की संख्या बढ़ा देने से ही इस पर अंकुश लग जाएगा। ऐसा तब तक मुमकिन नहीं है, जब तक कि दिल्लीवाले खुद इसके लिए जागरूक नहीं होते। पुलिस को भी वारदात के बाद ही सूचना क्यों दी जाती है। होना तो यह चाहिए कि किसी भी तरह का झगड़ा होने या फिर विवाद की स्थिति में फौरन पुलिस को जानकारी दी जाए, लेकिन दिल्लीवाले किसी झगड़े में पड़ने के डर से ऐसा नहीं करते। हर किसी को एक जागरूक शहरी होने का फर्ज निभाना चाहिए और वक्त रहते इसकी जानकारी पुलिस को देनी चाहिए। इससे काफी हद तक इन वारदातों को कम किया जा सकता है। साथ ही पुलिस को भी चाहिए कि वह अपना सूचना तंत्र मजबूत करे ताकि वारदात से पहले ही उसे जानकारी मिल सके।