समाज पर गंभीर सवाल है घरेलू हिंसा
अक्सर घरेलू हिंसा के मामले इतने वीभत्स और हिंसक हो जाते हैं कि सभ्य समाज पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है। कई महिलाओं की तो हर रात इस डर में कटती है कि कहीं कोई अनहोनी न हो जाए। यह समाज पुरुष प्रधान है, पर इस समाज में ऐसे पुरुष भी हैं जो इंसान कहलाने के लायक भी नहीं हैं। ¨हसा कोई भी हो, वह समाज के विरुद्ध होती है और जो हिंसा समाज के विरुद्ध हो उसके दमन के लिए समाज को आगे बढ़कर आना चाहिए। दूसरी तरफ समाज इस हद तक आधुनिक हो गया है कि मानवीय संवेदनाएं दम तोड़ चुकी हैं। पड़ोस में कौन पिट रहा है या कौन पीट रहा है, इससे किसी को कोई मतलब नहीं है। शायद तभी तो भारत में घरेलू हिंसा की घटनाएं दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं। अनगिनत ऐसी महिलाएं हैं, जिनकी जिंदगी इतनी बोङिाल हो चुकी है कि उन्हें आत्महत्या करना जीने से ज्यादा आसान लगता है। पारिवारिक कलह ङोलना, बच्चों को पालना, एकल मातृत्व का दर्द ङोलना हर किसी के वश की बात नहीं है, लेकिन ऐसी जिंदगी जीने वाली महिलाओं की संख्या बढ़ती जा रही है।