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Wednesday 9 December 2015

२२ करोड़ की लूट



क्षिणी दिल्ली के पॉश इलाके ग्रेटर कैलाश में प्रदीप पैसों से भरी एक वैन लेकर जा रहा था। जमरूदपुर पहुंचने पर वैन के गार्ड सत्य प्रकाश और कुछ लोगों में पार्किंग को लेकर विवाद हो गया। झगड़ा बढ़ा, भीड़ इकट्‌ठी हो गई और लोग सत्य प्रकाश को पीटने लगे। हड़बड़ाहट में उससे बंदूक चल गई। वहीं अपने साथी को पिटता देख एक अन्य गार्ड ने भी भीड़ पर गोली चला दी। कुछ लोग घायल हुए और एक आदमी मारा गया। इस बीच प्रदीप पैसों को नुकसान पहुंचने की आशंका को भांपते हुए, वैन लेकर वहां से निकल गया। वह सीधा सिक्योरिटी कंपनी के हेड ऑफिस पहुंचा। इस बहादुरी पर उसकी खूब तारीफ हुई। वह पूरे मामले में पुलिस का चश्मदीद गवाह भी बना। उसे साहसी होने का तमगा दिया गया। उसने पैसों को तो लुटने से बचाया ही था, बैंक और सिक्योरिटी कंपनी की साख भी बचा ली थी। यह बात इसी साल फरवरी की है।
कैश वैन ड्राइवर की नौकरी से न तो प्रदीप खुश था और न ही उसकी पत्नी शशिकला। कंपनी ने उसकी तनख्वाह 11 हजार रुपए तय की थी, लेकिन मिलते थे सिर्फ 6 हजार। ऊपर से उसे घर से कई दिन गायब रहना पड़ता था। यूपी के बलिया से प्रदीप दिल्ली नौकरी करने ही तो आया था, सो मजबूरी में कम पैसों में भी काम किए जा रहा था। शशिकला इस आर्थिक तंगी में तीन बच्चों को अकेले संभालते-संभालते तंग आ चुकी थी। प्रदीप तो घर आता नहीं था, इसलिए वह खुद ही आस-पड़ोस की दुकानों से उधार मांगकर घर चला रही थी। लेकिन अब तो उधार मिलना भी बंद हो गया था।
26 नवंबर। दोपहर के 2 बज रहे थे। प्रदीप कैश वैन लेकर एक्सिस बैंक की विकासपुरी शाखा के बाहर खड़ा था। आज करीब 38 करोड़ रुपए एटीएम मशीनों में भरे जाने के लिए चार वैन में लोड किए जा रहे थे। साढ़े 15 करोड़ रुपए तीन वैन में चढ़ा दिए गए, लेकिन प्रदीप की वैन में रखी गईं 9 पेटियां। इन पेटियों में थे 22.5 करोड़ रुपए। प्रदीप को एहसास हुआ कि शायद इतनी बड़ी रकम वह पहली बार ले जा रहा है। उसके साथ सिर्फ एक गार्ड विनय पटेल की ड्यूटी थी। 2.30 बजे तक कैश लोड होने पर दोनों ओखला के लिए निकले, जहां उन्हें कंपनी गोदाम में पैसे उतारने थे। यहां से पैसे दूसरी गाड़ियों में अन्य जगहों पर भेजे जाते। वे ओखला फेज 3 पहुंचने वाले थे कि तभी कैप्टन गौड़ मार्केट के पास विनय ने प्रदीप से गाड़ी रोकने को कहा। विनय को नैचुरल ब्रेक के लिए जाना था। गाड़ी रुकी और पैसे प्रदीप के भरोसे छोड़ विनय झाड़ियों में चला गया। अब सिर्फ प्रदीप था और गाड़ी में रखे 22.5 करोड़ रुपए।
अचानक प्रदीप को एक ख्याल आया। एक खुराफाती ख्याल। 'क्यों न मैं ये पैसे लेकर भाग जाऊं? बहुत हो गया। नहीं करनी अब ये नौकरी। पैसे ले जाता हूं, घर से बच्चों को और शशि को लेकर कहीं दूर निकल जाऊंगा।' ये ख्याल आते ही प्रदीप ने वैन चालू की और निकल गया। विनय लौटा तो उसे वैन नदारद मिली। उसने तुरंत प्रदीप को फोन किया। विनय ने पूछा, 'कहां चले गए?' प्रदीप ने जवाब दिया, 'अरे वहां गाड़ी खड़ी करने पर पुलिस वाले परेशान कर रहे थे। तुम वहीं रुको मैं यू-टर्न लेकर आता हूं।' विनय इंतजार करने लगा। कुछ देर बाद उसने फिर प्रदीप को फोन किया। जवाब मिला, 'भीड़ में फंस गया हूं, आता हूं।' अबकि बार विनय ने फोन किया तो प्रदीप मोबाइल बंद कर चुका था। आधे घंटे बीत चुके थे, लेकिन प्रदीप नहीं लौटा। 22.5 करोड़ रुपए जा चुके थे। प्रदीप उन्हें 'लूट' चुका था।
'मैं पैसे ले तो आया, पर अब इन्हें कहां ले जाऊं? नौ पेटियां हैं!' यही सोचते-सोचते प्रदीप ओखला फेज 3 की ओर तेजी से बढ़ रहा था। फिर उसे गोदाम नंबर 214 की याद आई। उसने सोचा, 'वहां रामसरस काका होंगे, उन्हीं के पास पैसे रख देता हूं। कार का पुराना गोदाम है, वहां कोई नहीं आएगा। फिर घर जाकर फैमिली को लेकर निकल जाऊंगा।' पैसों से भरी वैन लेकर प्रदीप रामसरस काका के पास पहुंचा। काका पुराने परिचित थे इसलिए उन्होंने ज्यादा सवाल नहीं किए। प्रदीप ने इतना ही बताया, 'काका इसमें पन्नियां हैं, कल सुबह इन्हें बनारस ले जाना है। रातभर के लिए रख लो।' काका बूढ़े थे, इसलिए प्रदीप ने खुद ही पेटियां उताकर गोदाम में रख दीं। उसने कुछ पैसे अपने पास रखे और करीब 3000 रुपए काका को भी दिए। अब अगली समस्या थीकि वैन का क्या करें? आखिरकार उसने गोविंदपुरी मेट्रो स्टेशन के पास सर्विस रोड पर वैन खड़ी कर दी।
गार्ड विनय ने सिक्योरिटी कंपनी को खबर कर दी थी। शाम करीब 4.30 बजे से कंपनी ने जीपीएस के जरिए वैन की खोज शुरू कर दी। लोकेशन पता लगते ही पुलिस को खबर की। कंपनी और पुलिस को वैन तो मिल गई, लेकिन पैसों की पेटियां गायब थीं। स्वाभाविक था कि कंपनी और पुलिस को प्रदीप पर ही शक था। शाम को करीब 6.30 बजे से पुलिस ने मामले की तफ्तीश शुरू की। उसके घर का पता, परिवार, पुलिस रिकॉर्ड, मोबाइल लोकेशन, सभी चीजों की पड़ताल होने लगी। यहां तक कि आसपास के राज्यों की पुलिस और पाकिस्तान व नेपाल की सीमाओं को भी सचेत कर दिया गया। पुलिस को भरोसा हो चला था कि इतने कम समय में, इतने पैसों के साथ प्रदीप दिल्ली से तो बाहर नहीं जा सकता। उसे ओखला के आसपास ही खोजना होगा।
रात हो चली थी। टीवी पर खबरिया चैनल प्रदीप की तस्वीर के साथ खबरें दिखा रहे थे। 'दिल्ली की अब तक की सबसे बड़ी लूट!' '22.5 करोड़ रुपए लेकर ड्राइवर चंपत!' 'पुलिस की तफ्तीश जारी!' इन सबसे बेखबर प्रदीप ओखला में ही घूमता रहा। वह अपनी पत्नी शशिकला से मिलने घर पहुंचा, लेकिन वह मिली नहीं। प्रदीप ने पड़ोसी से कहा, 'शशि आए तो कह देना मैं वापस आऊंगा।' वह अचानक अमीर हो गया था। करोड़पति। वह इसे हजम नहीं कर पा रहा था। उसने तो सोचना भी शुरू नहीं किया था कि वह इतने पैसों का करेगा क्या? शायद प्रॉपर्टी खरीदे। उसे लगा कि कुछ पैसा दान कर देना चाहिए। शुरुआत एक रेस्त्रां से की। बिल बहुत कम बना था, लेकिन उसने वेटर को 500 रुपए थमा दिए। सड़कों पर निकला तो उसने गरीबों और भिखारियों में पैसे बांटने शुरू कर दिए। 'तू भी क्या याद रखेगा...', 'ले तेरी भी किस्मत खुल गई...'। 500 के नोट थमाते हुए वह लोगों से यही कहता जा रहा था। 'दान' का सिलसिला थमा तो उसने कुछ खरीदारी की। एक घड़ी और कुछ कपड़े। इतने खर्चे के बाद भी वह 22 करोड़ में से सिर्फ साढ़े दस हजार रुपए खर्च कर पाया था। वह भूल गया था कि इस तरह पैसे बांटते हुए वह कदम-कदम पर पुलिस के लिए सुराग छोड़ता जा रहा है।
रात के 9.30 बज चुके थे। वोडका की बोतल और चिकन फ्राय लेकर प्रदीप वापस गोदाम नंबर 214 पहुंचा। रामसरस काका पेटियों के बगल में ही सो रहे थे, इस बात से अंजान की पेटियों में करोड़ों रुपए हैं। अब तक प्रदीप को अंदाजा हो गया था कि पुलिस उसे ढूंढ रही होगी, इसलिए उसने डर के कारण गोदाम की लाइटें चालू रखीं। वहां पुलिस प्रदीप की मोबाइल लोकेशन के आधार पर तय कर चुकी थी कि वह ओखला में ही कहीं है। वैन के जीपीएस के आधार पर भी यह साफ था कि पैसे यहीं-कहीं किसी गोदाम में हैं। पुलिस इलाके में प्रदीप की तस्वीर लेकर उसे ढूंढ रही थी। गोदाम से कुछ दूर स्थित एक चाय की दुकान के मालिक अजय ने इस बाद की पुष्टि कर दी कि प्रदीप यहीं है। तड़के करीब 4 बजे पुलिस को एक गोदाम की लाइट जलती हुई दिखी। शक के आधार पर पुलिस ने गोदाम के गेट पर दस्तक दी। रामसरस ने सोचा कि पानी का टैंकर आया है। लेकिन यह पुलिस थी। प्रदीप ने पुलिस को देख भागने की कोशिश की, लेकिन उसे पैसों के साथ धर दबोचा गया। एक पल के लिए आए खुराफाती ख्याल ने प्रदीप शुक्ला को मुजरिम बना दिया। गनीमत है कि वह बैंक में जमा आम जनता के करोड़ों रुपए लेकर भागने के अपने मंसूबे में कामयाब न हो सका और लूट की ये कहानी कुछ घंटों में ही खत्म हो गई।
(पुलिस अधिकारियों और पड़ोसियों से बातचीत पर आधारित)
अजय प्रकाश / विनायक दुबे 
Source : दैनिक भास्कर