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Sunday 24 January 2016

सूखे दरख्त भी गुलजार :--- जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल

"नज्मों की जुबान में जब बात चली तो कभी नदी के साथ बही, कभी पहाड़ों से उतरी, कभी बादलों को सीने में धर आसमान तक जा पहुंची। तो कभी बचपन के पेड़ों की शाखों में सुकून के साथ बैठी।"

प्रख्यात गीतकार, शायर, फिल्मकार गुलजार की धुएं की सी खराश लिए हुए आवाज में नज्में ढल रही थीं। और लोग डूबे हुए थे। लफ्जों की इस सालाना मजलिस का हिस्सा सा बन चुके 81 साल के गुलजार हर साल नए से लगते हैं।




बड़ों की इज्जत नहीं करते इसलिए छोटे रह जाते हो