"नज्मों की जुबान में जब बात चली तो कभी नदी के साथ बही, कभी पहाड़ों से उतरी, कभी बादलों को सीने में धर आसमान तक जा पहुंची। तो कभी बचपन के पेड़ों की शाखों में सुकून के साथ बैठी।"
प्रख्यात गीतकार, शायर, फिल्मकार गुलजार की धुएं की सी खराश लिए हुए आवाज में नज्में ढल रही थीं। और लोग डूबे हुए थे। लफ्जों की इस सालाना मजलिस का हिस्सा सा बन चुके 81 साल के गुलजार हर साल नए से लगते हैं।
प्रख्यात गीतकार, शायर, फिल्मकार गुलजार की धुएं की सी खराश लिए हुए आवाज में नज्में ढल रही थीं। और लोग डूबे हुए थे। लफ्जों की इस सालाना मजलिस का हिस्सा सा बन चुके 81 साल के गुलजार हर साल नए से लगते हैं।